Saturday, June 4, 2011


पर्यावरण दिवस पर एक ग़ज़ल 


कुँवर कुसुमेश 

पेड़ कटने  से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.

जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .

हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.

जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
उनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .

अनवरत  बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
   
****************

75 comments:

  1. वाह क्या बात है!
    ब्लॉगजगत के ग़ज़लों के बादशाह एक बार फिर ऐसी ग़ज़ल लेकर आए हैं जो दिल ही नहीं दिमाग में भी जगह बना रही है।
    जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
    किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
    एक एक शे’र पर्यावरण के प्रति समर्पित है .. और गहरे अर्थ रखता है।
    हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
    क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ.

    दिनों दिन गो रहे सामाजिक-आर्थिक बदलाव के कारण हो रहे पर्यावरण पर गम्भीर खतरों से सचेत होने के लिये तथा जन-चेतना लाने का भरसक प्रयास आप अपनी रचनाओं के माध्यम से करते रहते हैं, यह रचना भी उसी का उदाहरण है।

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  2. पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता चिंतन का विषय है...आप बहुत सहजता से इन मुद्दों को साहित्य के माध्यम से उठाते हैं.. बहुत सुन्दर...

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  3. To save our environment is our duty. Beautiful creation !...Loving it.

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  4. prernadayak hai apka yeh aalekh

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  5. आपकी सुन्दर प्रस्तुति आँखें खोलती है.
    समय रहते यदि हम नहीं चेते तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकतें हैं.
    इस अभिव्यक्ति के लिए आपका बहुत बहुत आभार.

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  6. जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
    उनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .
    bilkul

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  7. पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
    नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.

    जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
    किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .

    सुंदर रचना .....प्रेरणादायी , जागरूक करते ख्याल.....

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  8. सुंदर प्रेरणादायी रचना

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  9. हम इतने नासमझ है कि सबकुछ जानते हुए भी अनजान बन रहे है। गजल के माध्यम से आपने एक विचारणीय मुद्दे को उठाया है।

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  10. aap thheek kah rahe hain paryavaran pradoodan ke karan har taraf dushvariyan hi dushvariyan hain .aabhar

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  11. वाह कुँवर जी इस बार तो आप ने ऐसी बातों को ले कर ग़ज़ल पेश की है जो मेरी पहली पसंद होती हैं| ग़ज़ल इस सफ़र पर भी झंडे गाढ़ रही है| बहुत बहुत बधाई आदरणीय|

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  12. अपकी ग़ज़लों में जन-चेतना के तत्व भी मौजूद होते हैं। यह रचना इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

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  13. पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
    नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.

    पर्यावरण की रक्षा करना हम सभी का कर्त्तव्य है..
    पेड़ बचेंगे तभी जीवन बचेगा
    सुंदर रचना...

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  14. पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
    नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
    .
    बहुत खूब कुंवर जी पर्यावरण दिवस पर पेश एक बेहतरीन ग़ज़ल , इसको कल के तेताला ब्लॉग चर्चा मैं शामिल किया जा रहा है.

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  15. पर्यावरण दिवस पर बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ..हर शेर सच्चा सन्देश दे रहा है ..

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  16. ग़ज़ल तो खूबसूरत है ही!
    साथ ही सन्देश भी बहुत बढ़िया दिया है आपने!

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  17. गंभीर चिंतन का विषय ...सही समय पर सही प्रस्तुति
    आपके शब्द और बहुत सटीक प्रस्तुति

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  18. विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व बेला में जागरूकता बढ़ानेवाले बेहतरीन शेर...सार्थक ghazal के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
    ---देवेंद्र गौतम

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  19. कुसमेश जी!
    बेहतरीन गजल के लिए बधाई!
    आपकी तरह पर अपने मिजाज के अनुसार
    एक मिसरे में प्रदूषण फैलाने वालों पर तंज किया है।
    =====================
    दफ्तरों में क्या सुहाने चित्र बनते दिखिए,
    पान खाकर लोग ज्यों ही छोड़ते पिचकारियाँ।
    =====================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  20. जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
    उनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ . सही कहा!!

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  21. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल जिसके हर शेर पर्यावरण के प्रति समर्पित है ... आज पर्यावरण के प्रति जागरूकता की हर जगह ज़रूरत है ...

    "जन सन्देश टाइम्स" में ब्लॉग समीक्षा

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  22. पीपल के एक पेड़ की कीमत २५० करोड़ मापी गयी है . मानवता की सेवा के अर्थ में . हम व्यापारी है तो ऐसे धन को सजोंकर क्यू नहीं रख सकते ?

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  23. बहुत सुंदर..... पर्यावरण को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है.....

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  24. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (6-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  25. विचारणीय पोस्ट,ग़ज़ल के माध्यम से ,आँखें खोलने में सक्षम , आभार

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  26. अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
    हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
    बहुत बढ़िया रचना । बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

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  27. bahut hi badhia likha hai .
    samsamayik ..sarthak rachna .

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  28. जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
    किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
    हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
    क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ।
    बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! पर्यावरण पर आपने बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार गज़ल लिखा है! विचारणीय और सार्थक प्रस्तुती!

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  29. पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
    नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.

    जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
    किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .

    Aah! Kitna sahee hai!

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  30. बढ़ते हुए पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सचेत करती बहुत ही सार्थक गज़ल ! हाई ब्रिड सब्जियां देखने में चाहे जितनी भी आकर्षक हों स्वास्थ्य के लिये उतनी ही हानिकारक होती हैं ! बहुत ही सामयिक एवं विचारपूर्ण रचना ! आपको बहुत बहुत बधाई एवं आभार !

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  31. क्या बात है,बहुत ही बढ़िया,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  32. ये तेजाबी बारिशें बिजली घर की राख ,
    एक दिन होगा भू पटल ,वारणा -वर्त की लाख ."अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही कुंवर ,
    हर तरफ आती नजर दुश्वारियां - दुश्वारियां ."
    आओ कुछ ऐसा करें मिलकर कुँवर ,
    हर तरफ हों क्यारियाँ ही क्यारियाँ ।
    हों धरा की हम पर मेहरबानियाँ ।
    भाई साहब !पर्यावरणी दोहों और ग़ज़लों के लिए आपको बधाई !
    एनवायरन -मेंटल डिजीज इस दौर में एक स्वतन्त्र अनुशाशन बन चुका है .फिर भी वन -माफिया -सरकारी दुरभिसंधि खुलके खेल रही है ।
    "पेड़ पांडवों पर हुआ जब जब अत्याचार ,
    ढांप लिए वट -भीष्म ने तब तब दृग के द्वार .

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  33. lovely and a very apt post on Environment day !!

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  34. बहुत ख़ूब सर जी...बहुत ख़ूब! हर शेर लाजवाब है!
    आपकी ग़ज़ल के लिए आये सभी कॉमेंट्स से सहमत हूँ
    आभार!

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  35. अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
    हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.paryavaran diwas per aapne bahut hi sunder gajal likhi hai.aek-aek najm shaandaar hai.badhaai sweekaren.

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  36. आपके फ़न को हज़ारो सलाम | क्या बात लिख दी है |
    दिल से दाद और दुआ निकलती है आपकी और आपकी
    कलम की सलामती के लिए | मुबारक कुबूल फरमाएं |

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  37. सही चिंतन !
    शुभकामनायें आपको !

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  38. सार्थक लेखन......

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  39. पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
    नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
    आद. कुसुमेश जी,
    पर्यावरण पर बहुत ही खूबसूरत और जागरूकता पैदा करने वाली ग़ज़ल !
    आपकी कलम का जादू इस ग़ज़ल में भी साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है!
    साहित्य जगत आपके योगदान का हमेशा ऋणी रहेगा !
    आभार !

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  40. हो रहा रासायनिक खादों का इस दर्जा प्रयोग,
    क्या भला होंगी विटामिनयुक्त अब तरकारियाँ....

    बहुत खूब .... सचेत करती है आपकी ग़ज़ल ... सार्थक ग़ज़ल है ....

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  41. बहुत सुन्दर कुसुमेश जी !



    जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़कर प्रकृति

    उनके कन्धों पर यकीनन ही हैं जिम्मेदारियाँ |

    ..........................ऐसे कंधे भले कम हों मगर जिम्मेदारी तो इन्हीं को ही निभानी होगी

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  42. तबाही की तरफ़ ख़ुद ही बढ़ा जा रहा है
    समझदार होकर भी कर रहा है बदकारियां

    बहुत उम्दा और नसीहत देने वाले अशआर।
    दिल ख़ुश हुआ।

    ये बाबा कुछ अलग है ! -Rajesh Joshi

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  43. जिंदाबाद कुंवर जी जिंदाबाद...पर्यावरण दिवस पर इस से बेहतर ग़ज़ल और क्या होगी...हमने इसे अपनी कंपनी के नोटिस बोर्ड पर सबके पढने हेतु चिपका दिया है...क्यूंकि ये ग़ज़ल जन जन तक पहुंचानी चाहिए.

    नीरज

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  44. वाह ... बहुत ही गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ।

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  45. एक सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर प्रभावी रचना..

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  46. bahut shi kah hai.....pedh, wanaspati paryawaran aaj ka sabse badaa mudda hona chahiye....

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  47. आदरणीय कुंवर जी
    नमस्कार !
    बहुत खूब ..... सार्थक ग़ज़ल है

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  48. कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  49. ब्लॉग पर देर से पहुँचने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.पर्यावरण के प्रति आपका प्रेम और चिंता आपके एक जागरूक नागरिक होने का सबूत देते हैं.बेहद खूबसूरती से दर्द उकेरा है आपने. बधाई स्वीकारें.
    आभार

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  50. पर्यावरण के प्रति जागरूकता जगाती बेहतरीन ग़ज़ल.

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  51. बहुत सुन्दर गजल ...अच्छा लगा यहाँ आकर ..बधाई
    ___________________

    'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!

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  52. "अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
    हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ"
    अत्यंत सामयिक ,संवेदनशील एवं विचारपूर्ण गजलसदा की भांति एक सन्देश देती गजल..

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  53. सही चिंता का विषय

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  54. कुंवर साहब पर्यावरण की हित चिंता सदैव सराहनीय है .प्रकृति के साथ हम पापाचार कर रहे हैं / सार्थक सिल्प अवं कथ्य .
    अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
    हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.

    आभार जी /

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  55. पर्यावरण के प्रति जागरूकता ही पॄथ्वी को अस्तित्वमान रख पायेगी .... सादर !

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  56. जिनकी नज़रों में है भौतिकवाद से बढ़ कर प्रकृति,
    उनके कन्धों पर यक़ीनन ही हैं ज़िम्मेदारियाँ .
    पर्यावरण के प्रति सचेत करती उद्देश्यपूर्ण ग़ज़ल.वास्तव में भौतिकता की दौड़ में अक्ल और आँखों पर पर्दा पड़ गया है.प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी सभी की होती है.ऐसी कवितायेँ निश्चय ही सोचने के लिए मजबूर करती हैं.

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  57. पर्यावरण के प्रति आपकी प्रतिबद्धतता को दर्शाती गजल अच्छी लगी..बधाई.



    ********************
    कभी 'यदुकुल' की यात्रा पर भी आयें !!

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  58. Wonderful writing....

    Congrats on writing such a meaningful gazal.

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  59. ये देखकर बड़ा अच्छा लगा कि इस विषय पर भी ग़ज़ल लिखा जा सकता है. प्रेरक बातें सरल रूप में प्रस्तुत की है. आपकी इस गजल को मैंने फेसबुक पर भी शेयर किया है.

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  60. पेड़ कटने से बढ़ी हैं अनगिनत बीमारियाँ.
    नासमझ फिर भी खड़े हाथों में लेकर आरियाँ.
    bahut badhiyaan ,sach hi hai hum aksar jaankar hi galtiyaan karte hai .

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  61. आपने शब्द रूपी आड़ी से हमें विक्षत कर दिया है .अब भला न चेते तो कब ?

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  62. पर्यावरण पर आपकी ग़ज़ल देख अच्छा लगा... आपका चिंतन और साहित्य सार्थक है...

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  63. एक खूबसूरत ग़ज़ल और एक विचारणीय संदेश.........

    शहर से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ... क्षमा प्रार्थी हूँ.

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  64. अनवरत बढ़ते प्रदूषण की बदौलत ही 'कुँवर',
    हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.
    ....वाह!

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  65. बहुत अच्छा संदेश दिया है सर!

    -----------------------
    आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
    नयी-पुरानी हलचल

    धन्यवाद!

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  66. एक खूबसूरत ग़ज़ल और एक विचारणीय संदेश|

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  67. पर्यावरण संरक्षण जैसे विषय पर गजल विधा में लिखना वास्‍तव में एक नया और साहसिक कदम है। आपको बहुत बहुत बधाई।

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  68. पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता चिंतन का विषय है...एक खूबसूरत ग़ज़ल और एक विचारणीय संदेश...........

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  69. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  70. जन्म से ही सैकड़ो बच्चों में बीमारी दिखे,
    किस तरह मांयें सुरक्षित कर सकें किलकारियाँ .
    lajavab ati sunder
    saader
    rachana

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  71. हर तरफ आती नज़र दुश्वारियाँ-दुश्वारियाँ.

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  72. मुश्किल विषय पर कही गयी सुंदर गज़ल बधाई |

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  73. जहर युक्त विटामिन मुक्त तरकारियो को खा बना जीवन कैसे जियें

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  74. अब तो हारमोन्स के टीके लगे फल और तरकारियाँ खाने की नौबत आ गई जिसका प्रभाव मनुष्य के व्यवहार पर सीधे पड़ता है. जिम्मेदारी की याद दिलाती रचना.

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