Monday, March 19, 2012

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक......




कुँवर कुसुमेश 

फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.

दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.

चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
*****
दौरे-हाज़िर=वर्तमान समय,   क़ाबिले-कुर्सी=कुर्सी के योग्य.
गर्दिशे-अय्याम=संकट के दिन 

63 comments:

  1. वाह!!!!!

    बहुत खूब ....बेहतरीन गज़ल..
    सादर.

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  2. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

    एकदम सटीक

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  3. पर इसी शे'र में लिल्लाह फँसे हैं अब तक!!

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  4. फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
    और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.
    बहुत सुंदर पोस्ट
    my resent post


    काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

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  5. खूबसूरत रचना। कुछ तो ये भी जालिम है कुछ हमे मरने का शौक भी

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  6. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
    ....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी प्रस्तुति...

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  7. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
    .........सुन्दर रचना

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  8. कुसुमेश जी आपकी रचना का बहुत दिनों से इंतेज़ार था|

    ###########
    दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

    लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
    ###########
    उत्तर प्रदेश की मौजूदा हालत पर आपके ये शेर बिल्कुल सटीक हैं|
    ###########
    फूल के नाम पे काँटे ही मिले हैं अब तक.
    और हम हैं कि उमीदों पे टिके हैं अब तक.
    ############
    ये शेर एक तरफ मोहब्बत की बात कहता है, दूसरी ओर समाज के प्रति राजनेताओं की जवाबदेही की उम्मीद|

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    क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
    तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
    ###########
    ये शेर अभी भी उम्मीद बँधे होने की बात कहता है.

    ########
    चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
    पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.
    ###########

    इस शेर पर बस इतना कहना है............
    दर्द इतना है की अब सहा नहीं जाता;
    बयाँ करें कैसे,ज़ुबाँ से कहा नहीं जाता.

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  9. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
    Bahut,bahut sundar!

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  10. सुन्दर रचना... हर शेर जानदार...

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  11. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

    सुभान अल्लाह...इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें

    नीरज

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  12. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

    इस शेर से राजा भय्या की याद आ गयी .... अखिलेश जी ने अपने मंत्रिमंडल में रखा हुआ है ...

    कुछ टिमटिमाते दीपक ही हैं जो रोशनी दिखाते रहते हैं ... बहुत खूबसूरत गजल है ...

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  13. क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
    तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
    बस एक वो हंसी है जिसके सहारे उमर कट जाती है - हंसते-हंसते!
    मन को छू गई ये पंक्तियां और यह ग़ज़ल!

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  14. खुदा की रहमत है कि आप यूँ ही शेर में फंसा करें और बेहतरीन रचा करें .

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  15. अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति
    कल 21/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... मुझे विश्‍वास है ...

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  16. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    बहुत खूबसूरत गज़ल हर शेर मुकम्मल्।

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  17. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    .....बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल ....

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  18. वाह वाह and वाह वाह..
    can never stop saying this :D
    two exactly opposite emotions in a single couplet
    Fantastic read !!

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  19. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.
    बहुत ही सुंदर शायरी है ....
    जबरदस्त ...!

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  20. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    हर शेर लाज़वाब... आभार

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  21. हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.....

    वाह! सर.... शानदार ग़ज़ल...
    सादर बधाई...

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  22. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
    मेरी पसंद का शेर !
    आपने अपनी ग़ज़लों में हमेशा सच्चाई को जीया है
    आभार !

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  23. वाह जी...क्या बात है...बहुत उम्दा गज़ल!!

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  24. Nice poem .
    http://aryabhojan.blogspot.in/2012/03/blog-post_06.html

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  25. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    बहुत सुन्दर रचना... आभार.

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  26. दौरे-हाज़िर ने उसे काबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

    यही सच्चाई है, इस दौर की।
    ग़ज़लगोई में आपका जवाब नहीं।

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  27. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक...

    सच तो यही है की बुराई जितनी भी आ जाये .... अच्छाई पे कम ही पढ़ती है .. कोई दिया तो रह ही जाता है जलता हुवा रौशनी के लिए ...
    लाजवाब गज़ल है ...

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  28. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.

    बहुत खूब .इस दौर की राजनीति का प्रक्षेपण है यह ग़ज़ल .
    इस शैर को -


    'लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.'

    पढके अन्ना जी की याद आगई .

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  29. चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
    पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.

    इस स्तिथि से अक्सर दो चार होना पड़ता है .....रचना उम्दा है !

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  30. wah....bahut khoob

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  31. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
    तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.


    बेहद शानदार लाजवाब गज़ल .....

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  32. हर शेर मुकम्मल....

    "चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
    पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक."

    बहुत खूब.....
    अब इसके बाद क्या कहूँ.....!!

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  33. बेहतरीन अशआर हैं सभी!
    आभार..
    "दिये" को सही करके "दीये" कर लें..

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  34. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.
    बहुत जानलेवा शेर है ये आपकी ग़ज़ल का। उस्तादी झाँक रही है गज़ल के हर एक शेर से .. कभी तशरीफ लाएँ गरीबखाने में

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  35. खूबसूरत ग़ज़ल...

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  36. दौरे-हाज़िर ने उसे क़ाबिले-कुर्सी माना,
    हाथ जिस जिस के गुनाहों में सने हैं अब तक.. इस ग़ज़ल का सबसे सुंदर शेर

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  37. bahut hi sundar rachna,bdhaai aap ko

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  38. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    hausle ko buland karne wala sher..umda gazal

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  39. इस ग़ज़ल का हर एक शेर नगीना है .... इस मक्ते की जितनी दाद दी जाये उतनी ही कम....

    चाहता हूँ कि कहूँ और भी अशआर 'कुँवर'
    पर इसी शेर में लिल्लाह फँसे हैं अब तक.

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  40. सर जी बहुत ही सुन्दर !

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  41. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.very nice......

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  42. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    Khoob Kaha....

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  43. हैं आँधियां आईं हर दौर में लाखों
    है आस में जीता,शायर अब तक

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  44. बहुत ही सुन्दर रचना....
    सुन्दर भाव अभिव्यक्ति :-)

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  45. सार्थक पोस्ट ..!
    नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  46. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,

    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    जिजीविषा थकती नहीं है .....हर अश आर अपनी आंच असर लिए है .

    कृपया यहाँ भी आयें - ram ram bhai

    बुधवार, 21 मार्च 2012
    गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .

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  47. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.

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  48. क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
    तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
    bahut sundar rachna ....der se aana hua,

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  49. बहुत सुन्दर !

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  50. बहुत सुन्दर गज़ल..और आज की स्तिथि पर भी.. वाह कुश्मेश जी..

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  51. अपने मन के भावों को प्रकट करने का यह तरीका अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  52. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    लाजवाब...

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  53. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    आपकी गज़लगोई का कोई जबाब नहीं.

    बेहतरीन प्रस्तुति.

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  54. क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
    तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब तक.
    बेहतरीन

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  55. लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.

    क्या कहूँ गर्दिशे-अय्याम तुझे इसके सिवा,
    तेरी चाहत के हँसी फूल खिले हैं अब त.....sacchai to phir sacchai hoti hai..agar noor sachha hai to aandhiya use bujha nahi sakti hain..kahin jindagi kee hakeekat...kahin roomaniyat..kahin mashwira....har sher dil ko choone wala hai

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  56. कुश्मेश जी.. देर से आने के लिये माफी चाहुँगी....आप की गजल पढ़ी बहुत ही सुन्दर लिखा है..........लाख आँधी ने चराग़ों को बुझाना चाहा,
    टिमटिमाते हुए कुछ फिर भी दिये हैं अब तक.....बहुत खूब..

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