Wednesday, October 10, 2012

पुस्तक परिचय


                                                
पुस्तक का नाम        :   मेरे भीतर महक रहा है(ग़ज़ल संग्रह)        ग़ज़लकार : मनोज अबोध 
प्रकाशक                   : हिंदी साहित्य निकेतन,बिजनौर                    मूल्य  :150/-
प्रकाशन वर्ष             :                 2012                                      पृष्ठ   :96

पिछले लगभग तीन दशकों के दौरान हिंदी में ग़ज़ल के कई संग्रह नज़र से गुज़रे।हिंदी में ग़ज़ल कहने वालों की संख्या में न सिर्फ ज़बरदस्त वृद्धि हुई है बल्कि बहुत अच्छे ग़ज़ल संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं, और हो रहे हैं। इसी श्रृंखला में जनाब मनोज अबोध जी का ताज़ा-तरीन ग़ज़ल संग्रह,मेरे भीतर महक रहा है, मेरे हाथों में है।यह इनका दूसरा ग़ज़ल संग्रह है।वर्ष 2000 में प्रकाशित इनका पहला ग़ज़ल संग्रह,गुलमुहर की छाँव में,काव्य जगत में हाथों-हाथ लिया गया।
प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह,मेरे भीतर महक रहा है, में मनोज जी ने ग़ज़ल के रिवायती अंदाज़ को बरक़रार रखते हुए रूमानी अशआर कहे हैं, तो मौजूदा हालात पर भी क़लम बखूबी चलाई है।
रूमानी अंदाज़ में शेर कहते हुए मनोज कहते हैं कि :-
कुछ वो पागल है,कुछ दीवाना भी।
उसको जाना मगर न जाना भी।
आज पलकों पे होठ भी रख दो,
आज मौसम है कुछ सुहाना भी।- - - - - -  पृष्ठ-27
रूमानी अशआर कहते वक़्त मनोज अबोध की सादगी भी क़ाबिले-तारीफ है।देखिये :-
प्रीत जब बेहिसाब कर डाली।
जिंदगी कामयाब कर डाली।
बिन तुम्हारे जिया नहीं जाता,
तुमने आदत खराब कर डाली। - - - - - - -पृष्ठ-43
मुश्किलों से न घबराते हुए अपना आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए ग़ज़लकार  कहता है कि :-
तमाम मुश्किलों के बाद भी बचेगा ही।
तेरे नसीब में जो है वो फिर मिलेगा ही।---पृष्ठ-26
हालाँकि एक शेर में आगाह भी करते हुए चलते है कि :-
फूल ही फूल हों मुमकिन है भला कैसे ये ?
वक़्त के हाथ में तलवार भी हो सकती है।- -पृष्ठ-93
बहरे-मुतदारिक सालिम में कही गई ग़ज़ल-32 के दूसरे शेर का मिसरा-ए-सानी "बिटिया जब से बड़ी हो गई" ताक़ीदे-लफ्ज़ी की गिरफ़्त में है और हल्की-सी तब्दीली मांग रहा है।देखिये :- 
छाँव क़द से बड़ी हो गई ।
एक उलझन खड़ी हो गई।
फूल घर में बिखरने लगे
बिटिया जब से बड़ी हो गई। - - - -  - - - - पृष्ठ-50
इसे यूँ किया जा सकता है:-
फूल घर में बिखरने लगे
जब से बिटिया बड़ी हो गई। 
संग्रह की छपाई बेहतरीन,मुख पृष्ठ आकर्षक और पुस्तक संग्रहणीय है। मनोज अबोध जी के अशआर पढ़ते ही ज़ेहन नशीन हो जाते हैं। मैं दुआगो हूँ कि शायरी के इस खूबसूरत सफ़र पर मनोज जी ताउम्र गामज़न रहें और इसी तरह अपने उम्दा अशआर से अपने चाहने वालों को मह्ज़ूज़ करते रहें।

कुँवर कुसुमेश 
4/738 विकास नगर,लखनऊ-226022
मोबा:09415518546

41 comments:

  1. अच्छा लगा यह पुस्तक परिचय ... आभार

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  2. किताब का तआर्रूफ़ का अंदाज़ पसंद आया।
    See:
    http://aryabhojan.blogspot.in/2012/10/how-to-regain-vibrant-health-energy-in.html

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  3. बहुत ही अच्‍छी समीक्षा की है आपने गजल संग्रह की ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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  4. बढ़िया समीक्षा....
    आभार इस पुस्तक से मिलवाने के लिए.

    सादर
    अनु

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  5. चुनिंदा शेरों के जरिये गजलों के विभिन्न शेड्स से परिचय करा दिया आपने.

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  6. समीक्षा के साथ सुन्दर प्रस्तुति....! शुभसंध्या!

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  7. बहुत रोचक पोस्ट..मनोज जी के अशआर इस पुस्तक को पढने के लिए मजबूर कर रहे हैं...लिखता हूँ उन्हें इस किताब के लिए उम्मीद है भिजवा देंगे...

    नीरज

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    1. जी नीरज जी, भेज रहा हूं जल्‍दी

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  8. बढ़िया समीक्षा...सभी गज़लें अच्छी लग रही हैं|
    शुभकामनाएँ!!

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  9. मनोज अबोध जी की शख्सियत और उनके कलाम से रूबरू होकर दिली खुशी हुई, बहुत अच्छा लिखते हैं।
    उन्हें और आपको बधाई !

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  10. कुछ रोज पहले ही मनोज 'अबोध' जी से दिल्ली में एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई थी जहाँ उन्होने अपनी कुछ ग़ज़ल गा कर सुनाई थीं| उनके बारे में यहाँ पढ़ कर अच्छा लगा, और उनकी किताब के बारे में जान कर खुशी हुई.
    आपको प्रणाम
    सहृदाया आभार!!!!!

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  11. बहुत बढ़िया समीक्षा... मनोज अबोध जी और आप को बधाई.

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  12. समीक्षा लिखना बहुत कठिन काम है ...ये मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ ...हर रचना को बहुत बारीकी से पढ़ना और समझना होता है ...तभी आप उस पर कुछ लिख सकते है....आपने बेहद सधे हुए शब्दों में पूर्ण समीक्षा की ...इसलिए आप बधाई स्वीकार करें और मनोज जी भी बधाई ..उनके इस संग्रह के लिए

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  13. मेरे भीतर महक रहा है,....(ग़ज़ल संग्रह),,,,,और ग़ज़लकार : मनोज अबोधजी से परिचय
    कराने के लिये आभार, सुंदर समीक्षा,,,,,बधाई कुसुमेश जी,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  14. लाजवाब कुंवर साहब!
    पुस्तक पढ़ने की इच्छा जागृत हो गई।

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  15. शानदार समीक्षा और खुबसूरत ग़ज़ल

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  16. बहुत सुन्दर समीक्षा ...मनोज जी को .उनके इस संग्रह के लिए और आपको सुन्दर लेखन के लिए बहुत - बहुत बधाई

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  17. गजलों के जो अंश उद्धृत किए गए हैं काफी उद्वेलित करनेवाले हैं। लेकिन गज़ल के एनाटॉमी से अनभिज्ञ होने के कारण कुछ कहना उचित नहीं होगा। हाँ, कुसुमेश जी ने जिन तथ्यों को पुस्तक से उद्धृत कर स्थापित करने का प्रयास किया है, प्रशंसनीय है। वैसे तीन-चार सौ शब्दों में किसी पुस्तक की समीक्षा तो नहीं हो सकती। लेकिन पुस्तक से अच्छा परिचय कराया गया है। कुसुमेश जी का आभार।

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    1. वाकई कुसुमेश जी बहुत अच्‍छे साहित्‍यकार हैं

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  18. बहुत सुन्दर समीक्षा...

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  19. आपकी समीक्षा बहुत सुन्दर है ..............बधाई

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  20. पुस्तक और लेखक से इतने सुंदर तरीके से परिचित कराने के लिए आभार कुसुमेश जी.

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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    1. आपके स्‍नेह के लिए आभारी हूं ।

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  22. बेहतरीन और विस्तृत समीक्षा. मनोज जी को उनके इस संग्रह के लिए बहुत बधाई.

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  23. आदरणीय अग्रज कुसुमेश जी के स्‍नेह और आप सभी सुधी पाठक मित्रों के विचारों के प्रति आभारी हूं

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