Monday, May 27, 2013

मंहगाई की मार


मंहगाई में हो गया,अब जीना दुश्वार।
लगातार यूँ पढ़ रही,मंहगाई की मार।।
मंहगाई की मार,दाम बढ़ते रोज़ाना।
अब न हवा है शुद्ध,और न आबो-दाना।।
बैठे-बैठे रोज़ , सोचता तन्हाई में,
आग लगे,हाँ आग,लगे इस मंहगाई में।।
-कुँवर कुसुमेश 

15 comments:

  1. मंहगाई की मार ने इतनी लाजवाब कुंडली की उत्पत्ति करा दी ... बहुत लाजवाब धार दार ...

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  2. आग लगा कर भी कहाँ मिल पाएगा चैन
    बत्तीस रुपए बहुत हैं ये हैं सरकारी बैन ।

    सटीक कुंडली

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  3. यह भी कईयों के लिए भगवान है |

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  4. मंहगाई के कारण तन्हाई भी बढ़ गई?? :)

    लाजवाब!!

    इस समस्या ने भी जोरदार 'कुँडली' मारी है।

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  5. बहुत सुंदर लाजबाब कुण्डली ,,

    RECENT POST : बेटियाँ,

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2013) के "मिथकों में जीवन" चर्चा मंच अंक-1258 पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. मह्गाये नागिन की तरह कुंडली मारकर बैठ गयी है ..बेहतरीन ..मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है

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  8. मंहगाई : यत्र,तत्र,सर्वत्र

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  9. मंहगाई,मंहगाई,मंहगाई..बहुत सटीक...

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  10. मंहगाई में हो गया,अब जीना दुश्वार।
    लगातार यूँ पड़ रही,मंहगाई की मार।।
    ..सच बाल बच्चों को पढना लिखना ..खिलाना-पिलाना बहुत कठिन होता जा रहा है ..
    बहुत बढ़िया

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  11. अब तो मंहगाई की मार सहने की हिम्मत भी नहीं बची....
    बहुत बढ़िया....

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  12. आदरणीय कुंवर भैया जी ये तो रोजनामचा है अब कहाँ त्रास देता है

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  13. सुरसा के मुंह की तरह बढती ही चली जा रही है, पता नहीं कहाँ तक लेकर जाएगी...आग लगे,हाँ आग,लगे इस मंहगाई में...

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  14. अब तो महंगायी ने मार ही डाला है. कितना अच्छा हो कि तनख्वाह भी महंगायी की रफ्तार से बढे.

    आजकल आपने ब्लॉग पर सक्रियता कम कर दी, स्वास्थ्य तो ठीक है ना अथवा कुछ और व्यस्तताएं हैं.

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