Friday, November 8, 2013

चलन ई-मेल का


--कुँवर कुसुमेश

हो गया मँहगा सफ़र अब रेल का। 

दाम फिर बढ़ने लगा है तेल का।।  

चिट्ठियां इतिहास बनती जा रही हैं ,

आ गया जब से चलन ई-मेल का।। 

*****

11 comments:

  1. सटीक छंद ... अब चिट्ठियों की महक कहां रही ...

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    शुभकामनायें आदरणीय

    ReplyDelete
  3. इ-मेल भी अब तो ज़्यादातर फ़ॉर्वर्डेड आते हैं...

    ReplyDelete
  4. WAAH KYA BAAT HAI BACHAPAN KI YAAD AA GAI

    ReplyDelete
  5. सुन्दर छंदों में सटीक बात
    नई पोस्ट काम अधुरा है

    ReplyDelete
  6. सुंदर रचना , बधाई आपको ।

    ReplyDelete
  7. वाह वाह
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  8. बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
    शुभकामनाएं.

    ReplyDelete