Wednesday, July 16, 2014

बिन बरसे जाने लगा...............



आँख मिचौली खेलता,मौसम अबकी बार। 

बिन बरसे जाने लगा,सावन आखिरकार ।।

-कुँवर कुसुमेश

6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17- 07- 2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1677 में दिया गया है
    आभार

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  2. पूरे देश में कमोबेस यही हालात हैं।

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  3. अब तो बरस रहा है

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  4. कारे -कारे -भूरे -भूरे बदरा आये ,झूम -झूम के बरसे।
    अभी बहुत खेत है सूखे , पावन ,शीतल जल को तरसे।
    नीलभ गगन यूँ दिखता है ,छुछ i हो जैसे वह जल से।
    मेंघो को आमंत्रण है ,बरसे धरा पर पूरे मन से।
    Posted by Dinesh Kumar Awasthi at 5:57 AM No comments:

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